गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

अलविदा २००९...

नव वर्ष आ गया है नवल चाह को लेकर,
नव गीत रीति नीति नवल राह को लेकर !
सब कुछ नया नया सा लगे नवल वर्ष में,
जीवन की बंदिशों में नव प्रवाह को लेकर !!
उम्मीदों के ताने बाने में उलझा ,अपनी उपस्थिति का एहसास कराने के लिए तैयार है एक और नया वर्ष!
समृद्धि का पर्याय बनकर बिलकुल समीप खड़ा है एक और नया वर्ष! ठीक उसी तरह जैसे कुछ महीने पहले इन्ही सर्दियों में आया था वर्ष २००९,नया बनके,लेकिन वो बीता हुआ कल हो गया है,अब वह नवीन वर्ष नहीं है,बल्कि उस सरहद के अंतिम छोर पर खड़ा है,जंहा से वह कभी वापस नहीं आएगा,आएँगी तो सिर्फ वर्ष २००९ की यादें!
परिवर्तन ने एक बार फिर अपने पंखो को परवाज़ दी और समय की सीढ़ियों से सरक गया एक और साल,बिलकुल वैसे,जैसे बंद मुट्ठी से सरक जाते हैं रेत के कण !सिन्दूरी शाम ने पृथ्वी को अपनी आगोश में ले रखा है,२००९ का अंतिम सूरज भरी मन और थके कदम से धीरे धीरे अस्त होने के लिए जा रहा है!
कल की सुबह २०१० के सूरज के साथ होगी जो अपने साथ नए विश्वास को लेकर निकलेगा!न जाने क्यों आशावादी विचारधाराएँ मस्तिष्क में कौंध रही हैं आशान्वित हैं हम की आने वाला साल उन सभी जख्मो पर मरहम लगाएगा जो २००९ ने हमें दिए हैं!उम्मीदों का पिटारा एक बार फिर खुलेगा और और उस जादुई पिटारे से निकलेगा कोई देवदूत,जो जीवन की परिकल्पना को साकार करेगा और स्नेह के उत्कर्ष में गोते लगा सकेगा मेरे और आपके जैसा इन्सान!कुल मिलाकर नए साल के स्वागत के लिए तैयार हैं हम सब,वैसे भी स्वागत करना हमारी संस्कृति है,हमारी परम्पराओं का हिस्सा है,स्वागत शब्द हमारी रगों में लहू बनकर दौड़ता है! इतिहास गवाह है,हमने हर नए आगंतुक के स्वागत में पलक पावडे बिछाए हैं,उनका सत्कार किया है! ये अलग बात है की कभी कभी इन्ही मेहमानों ने हमारी जिंदगी के कुछ पन्नो में गम की इबादत लिख दी है! जिन्हें याद करने के बाद अनायास ही पलकें भारी हो जाती हैं,या यूँ कहें की कुछ पल परेशानियों के बेताल बनकर हमारी पीठ पर लद गए हैं,और हम विक्रम बनकर वर्ष-दर-वर्ष उन्हें ढोते चले आ रहे हैं! वर्ष २००८ का नवम्बर महीना आज भी हमें डराता है,हमने नहीं सोचा था की जिस २००८ के आने का जश्न हमने जोर शोर से मनाया था ,जिस २००८ की मेहमान नवाजी हमने लोगों को शुभकामनायें देकर की थी ,वही २००८ जाते जाते दे जायेगा एक मनहूस तारीख जो जब जब याद आएगी तब तब मुस्कान को भी आंसू आयेंगे!कुछ खट्टे मीठे अनुभव के साथ आख़िरकार बीत गया २००९ भी! बीते हुए लम्हे को याद करके उसकी परिभाषा को कुछ यूँ पिरोया है मशहूर शायर निदा फाजली ने " जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नयी जाता "
जिस साल की उम्र सिर्फ एक दिन बाकी है वह बीत तो जायेगा लेकिन गुजरेगा नहीं क्यों की उसकी मधुरता और कसक यादों में ही सही पर साँस लेगी.....

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

बाबू की बचकानी बातें.......




बाबू की बचकानी बातें.......
आपने राजू श्रीवास्तव,एहसान कुरैशी,सुनीलपाल का नाम तो सुना ही होगा. ये वो लोग हैं, जो अपनी चुटीली बातों से लोगों का मनोरंजन करते हैं,लेकिन इन हास्य अभिनेताओ के साथ एक नाम और जुड़ गया है,और वो नाम है अपने 'राजू भैया' का. नही समझे,अमा मियाँ राजू का मतलब "मनसे प्रमुख राज ठाकरे"हिन्दी भाषियों के लिए विषपुरूष बन गये राज
आजकल यूपी बिहार वालो के लिए मनोरंजन का साधन बन गये हैं. खुदा कसम जितना हसी राजू श्रीवास्तवा के कार्यक्रम मे नही आती,उससे कही ज़्यादा राज ठाकरे का भाषण सुनकर आती है.वाह,क्या बोलता है....,बस मज़ा आ जाता है,अब कल ही "जनता की अदालत कार्यक्रम" मे अपने राज ने एक चुटकुला सुनाया.चुटकुला ये था की, "भैया लोग पानिपूरी बेचें",सरकार चलाने के चक्कर मे ना पड़े.पानिपूरी नही समझे,अरे भाई...पानिपूरी को दिल्ली वाले बताशा कहते हैं,कही कही इसे गोलगप्पे कहा जाता है,और हमारे जैसे बज्र देहाती,ठेठ इलाहाबादी इसे फुल्की कहते हैं.सिर्फ़ यूपी बिहार ही नही,परप्रांतीय लोगो पर भी झमाझम बरसे अपने राज बाबू.राज ठाकरे की माने तो वो महाराष्ट्र की राजनीति मे परप्रांतीय लोगो को नही आने देंगे,यानी मुंबई की राजनीति परप्रांतीय नही चलाएँगे. लेकिन जहाँ तक मेरी जानकारी है मुंबई की राजनीति,परप्रांतीय ही चला रहे हैं. सिर्फ़ राजस्थान के ही १७ विधायक हैं.इसके अलावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कृपाशंकर सिंह पूर्व गृह मंत्री,नसीम ख़ान गृह मंत्री,इसी तरह कई ऐसे नाम हैं जैसे अबू आज़मी,हरिवंश सिंह,वीरेंद्र उपाध्याय,संजय निरूपम,मुरली देवड़ा,फययाज़ ख़ान,घनश्याम दुबे,गुरुदास कामद,और बहुत से नाम हैं,जिनकी महाराष्ट्र की राजनीति मे सक्रिय सहभागिता है.लेकिन पता नही क्यों,राज ठाकरे ऐसी बचकानी बातें करते हैं? दूसरी बात ये की राज ठाकरे अपने आप को गरम दल का नेता कहते हैं," कान के नीचे बजाने के लिए"हमेशा तैयार रहते हैं.सिर्फ़ कहते ही नही हैं कभी कभी बजाते भी हैं,रिक्शे वालो को,टॅक्सी वालो को,ग़रीब मजदूरो को,दुकानदारो को,वाचमैन को,लेकिन अब यूपी बिहार के लोग भी लतखोरियत की हद पार कर गये हैं,उन्होने राज बाबू को घंटे पे मार दिया है, इनका कहना है की... अब तुम चिल्लाओगे तो हम डरेंगे नही, बल्कि हसेगे,यूपी बिहार के लोगों ने भी मन को संतोष दे दिया की,यह बजने बजाने का दौर जब चुनाव आएगा तभी आएगा ,और कभी अगर हमको भी मौका मिला तो बजने बजाने का खेल हम भी ज़रूर खेलेंगे,और अगर बजाने का भी मौका मिला तो ऐसा बजाएँगे की सामने वाले के कदम थिरकने लगे,बस यूँ समझ लो की वह भरतनाट्यम करने पर मजबूर हो जाएगा.खैर बात हो रही थी मनोरंजन की.तो भाई, मै तो राजू श्रीवास्तवा की जगह राज ठाकरे को सुनना पसंद करूँगा ,अब आप की मर्ज़ी आप चाहे जिसे
सुने,आपकी मर्ज़ी.....

सोमवार, 20 जुलाई 2009

पानी रे पानी

पानी की बरसात देखिये
खूब हुयी दिन रात देखिये
भर गया पूरे शहर में पानी
बादलों की औकात देखिये!

शहर हो गया पानी पानी
पानी की अब सुनो कहानी..


टैक्सी ड्राईवर से उसके बेटे ने पूछा,
मेरे बाप..
ये कैसी शक्ल बना के आये हैं आप?
बाप ने बेटे को
दिन दिन भर की कहानी सुनाई बड़े चाव से,
बोला,
गया था टैक्सी ले के आया हू नाव से,
बेटा सककाया
घबराया
बोला,
क्या बिना तराजू तोल रहें हैं,
जो मन में आया बोल रहे हैं,
समझ में नहीं आया फिर से समझाइए,
क्या हुआ आपके साथ ठीक ठीक बताइए,
बाप बोला-क्या बताऊ मेरे लाल
आज मैं हो गया बेहाल
घर से चला था की आज टैक्सी चलाऊँगा
ढेर सारा पैसा कमाऊँगा
लेकिन मेरी सोच पर
पानी ने पानी फेर दिया
इतनी बरसात हुई की..
कौआ बिरियानी कबाब हो गयी
पानी की बोतल शराब हो गयी
शहर की सड़कें तालाब हो गयी
और रास्ते में मेरी टैक्सी ख़राब हो गयी!
टैक्सी को चप्पू से टेरते हुए लाया हूँ
और खुद भी तैरते हुए आया हूँ.

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009





बाप की इज्ज़त की कीमत ........एक लाख रुपये
माँ की इज्ज़त की कीमत सिर्फ.......दस लाख रूपये
भाई के इज्ज़त की कीमत सिर्फ .....पचीस लाख रुपये
बहेन की इज्ज़त की कीमत सिर्फ ......पचास लाख रुपये
पूरे परिवार की इज्ज़त की कीमत .....एक करोड़ रुपये

जी हाँ बिलकुल सही पहचाना आपने ये परिवार बिकाऊ है ,और यंहा इसकी कीमत लगायी जा रही है ,
या यूँ कहें की चिथड़े उडाये जा रहें हैं उस समाज के,जिसे आम बोलचाल की भाषा में सभ्य समाज कहते हैं..
दिलचस्प बात ये है की इस दुकान में हर उस सख्श का स्वागत है जो खुद को, अपनी इज्ज़त को,मर्यादा को ,
पारिवारिक रिश्तों को,और सामाजिक सरोकारों को शर्म के साथ घोट के पी गया हो. मै बात कर रहा हू..
स्टार प्लस पर हाल ही में शुरू हुए एक रियलिटी शो "सच का सामना" की !
इस शो के ज़रिये लोगो को दिखाया जा रहा है की सच बोलना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है..
सब में ये दम नहीं होता की वो सच का समना कर सके..यानि ये शो किसी अग्निपरीक्षा से काम नहीं है ऐसा इस शो में बताया जा रहा है...
चलिए एक नज़र डालते हैं इस शो के एक प्रश्न पर जो शो के पहले दिन एक महिला से पूछा गया...
१-- क्या आप अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना पसंद करेंगी
अगर आपके पति को वो बात न पता चले?
इस सवाल का जवाब महिला ने न में दिया और उसका जवाब गलत हो गया यानि महिला ने झूठ बोला और वो शो से बाहर हो गयी...
सच झूठ का फैसला करने के लिए पोलीग्राफ मशीन लगी हुयी है जो ये बताएगी की आप सही बोल रहें हैं या झूठ...



बाजारवाद की गला काट प्रतियोगिता तो बहुत दिनों से चली आ रही है,,,
हर ब्यापारी अपना सामान बेचने के लिए तरह तरह के नुस्खे अपनाता है..कोई अपनी फिल्म हिट करने के लिए
चोली के पीछे क्या है..जैसे गाने परोसता है तो कोई सरकाय लेव खटिया जाड़ा लगे...
अभी तक टीवी शोज के ज़रिये बच्चो का बचपन बेचा जा रहा था ढेर सारे टीवी शोज हैं जिनमे बच्चे मुख्य भूमिका में हैं..
उसके बाद अब ये क्या है...?
इस शो के मुखिया राजीव खंडेलवाल की माने तो लोग अपनी मर्ज़ी से यंहा आते हैं और शो के ऑन एयर होने से पहले
उनसे पचास सवाल पूछे जाते हैं जिनमे से २१ सवाल दिखाए जाते हैं...
चलिए मान लेते हैं आपकी बात लेकिन क्या आपकी कुछ जिम्मेदारियां नहीं हैं समाज के प्रति...
क्या आप किसी समाज का हिस्सा नहीं हैं..
क्या आपका समाज के प्रति कोई सरोकार नहीं है..
किसी बुजुर्ग से ये पूछना की क्या आपके शारीरिक सम्बन्ध अपनी बेटी से भी कम उम्र की लड़की के साथ हैं..?
कंहा तक वाजिब है?
या
क्या आप अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना पसंद करेंगी
अगर आपके पति को वो बात न पता चले?
या
क्या आप की कोई नाजायज़ औलाद है..?
इन सवालों के जवाब देने पर आप जीत जायेंगे एक करोड़ रुपये...
यानि पैसा गुरु बाकि सब चेला..
आपको आश्चर्य नहीं करना चाहिए यदि आपके सामने ये सवाल आये...

क्या आपने अपनी बेटी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने की कभी सोची है?
आपसे आपकी सुहागरात की डिटेल पूछी जाये?
मुझे तो घिन आती है ऐसे सच पर..
मान लो ये सच बोल कर कोई एक करोड़ रुपये जीत भी जाता है तो क्या फिर दोबारा अपने ही परिवार
से नज़र मिलाने के काबिल वह रह पायेगा?
भगवान कृष्ण ने कहा था की झूठ बोलने से अगर किसी का भला हो जाये तो बोल देना चाहिए,
फिर ये कैसी अग्निपरीक्षा लेकिन समाज के सौदागर इज्ज़त आबरू का बाज़ार लगा के बैठे हैं जिसकी खरीद फरोख्त जोरो पर हैं..
और विडंबना ये है की बाज़ार के सञ्चालन का कार्यभार उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के सर पर है..
और उसको बाकायदा निभाया भी जा रहा है..
राजीव जी ने तो अपना हवाला दे दिया लेकिन बात वही आके अटक जाती है की पैसे के लिए और क्या क्या बिकेगा ?
किस तरफ जा रहे हैं हम और किस तरफ जा रहा है हमारा समाज?

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

देश के दोहे

भाषावाद ने अक्ल को बांटा,जातिवाद ने देश,
दोनों का नंगा नाच हो रहा देख सके तो देख!

महाराष्ट्र में मनसे पीटे,कर्नाटक करे बवाल,
क्या एक देश के हैं हम सब सरकार से बड़ा सवाल?

कर्नाटक में छात्रों के संग हो रही मारामारी,
कान में ऊँगली डाल के सो रही दलित कुमारी!

भाषावाद और क्षेत्रवाद चल रहे हैं सीना तान,
फिर भी देश महान है अपना, फिर भी देश महान!

दुर्वाशा का श्राप हो गया
बहुत बड़ा अभिशाप हो गया,
युपी.बिहार का होना
अपने ही देश में पाप हो गया!

सोमवार, 11 मई 2009

देश के दोहे

मंदी ने ऐसा मारा कि मिडिल वर्ग मर जाय,
“माया” को इससे क्या लेना वो स्टेच्यू रही बनवाय।

अरबों रुपया देश का स्टेच्यू में दिया बहाय,
भारत देश कहीं से फिर न गुलाम हो जाय।

नेता सोएं चैन से और देश में हुआ बवाल,
पहले दाल में काला था अब हो गई काली दाल।

अबै है चुनाव तो बदला नेतन के तान,
बाद मा बची भइया सिर्फ झूर खरिहान।

झूठ झूठ की बात से नेता रहें रिझाय,
पब्लिक तो है मूरख कैसे भी फंस जाय।

टेंशन फ्री हो के हम तो खा रहे भाजी पाव,
हमको कुछ नही लेना देना भाड़ में जाय चुनाव।

दुनियादारी पकड़ के लिखते रहिए ब्लाग,
पहले आग में घी था अब घी में डालो आग।

शुक्रवार, 8 मई 2009

लिखिए भाई लिखिए भाई

पीपल पेड़ पुराना लिखिए,
गांव का एक ज़माना लिखिए।
भौजाई का ताना लिखिए,
देवर का गुर्राना लिखिए ।
नाना का वो गाना लिखिए
नानी का शर्माना लिखिए ।
अपना कोई फसाना लिखिए
बीवी से घबराना लिखिए ।
देश का ताना बाना लिखिए,
देश की जान बचाना लिखिए ।
धूप में पांव जलाना लिखिए,
बारिश में नहाना लिखिए ।
कागज़ की नाव बनाना लिखिए,
बारिश में उसे बहाना लिखिए।
आना लिखिए जाना लिखिए,
हरकत कोई बचकाना लिखिए.।
मुलायम का साथी लिखिए,
मायावती का हाथी लिखिए।
कांग्रेस का पंजा लिखिए
कमल का कसा शिकंजा लिखिए।
समय का अत्याचार भी लिखिए,
टूटते घर परिवार भी लिखिए।
मंदी की मार भी लिखिए,
बढ़ते बेरोज़गार भी लिखिए।

बुधवार, 6 मई 2009

ओबामा-माया वार्तालाप

ओबामा-माया वार्तालाप

ओबामा अपने व्हाइट हाउस में गहरी नींद में सो रहा था.अचानक उसका ब्लैक बेरी फोन घनघनाने लगा ।ओबामा की कुम्भकर्णी नींद में खलल पड़ गयी,उठ कर देखा तो हिंदुस्तान से मायावती चैट का इनविटेशन दे रहीं थी ।
ओबामा ने मैसेज रिसीव किया और दोनो का हॉय हैलो शुरु हो गया...
मायाः क्या ओबामा क्या कर रहा था ?
ओबामाः सो रहा था यार।
मायाः अरे ओबामा हमेशा सोता रहता है, तेरा नाम ओबामा नहीं सोबामा होना चाहिए,और बता तेरे देश में क्या चल रहा है ? मंदी का क्या माहौल है ?
ओबामाः अरे माया मुझे भी कुछ टिप्स दो न, मेरे देश की हालत खराब चल रही है।मंदी में हाल बेहाल है।
मायाः देख मैं तुझे टिप्स तो दूंगी, लेकिन एक शर्त है, अगर मानने के लिए बोल तो आगे बात बढ़ाऊं।
ओबामाः मैं अपने देश की खातिर आपकी सारी शर्त मानने के लिए तैयार हूं।शर्त बताओ।
मायाः बता रहीं हूं, बता रहीं हूं, रोता क्यूं है, तेरा नाम ओबामा नहीं रोबामा होना चाहिए,मेरी शर्त के अनुसार व्हाइट हाउस के बाहर मेरा एक स्टेच्यू लगवाना पड़ेगा,क्यों कि मुझे खुद का स्टेच्यू लगवाने में बहुत मजा आता है,देख जो भी पैसा देश की तरक्की के लिए आए उसे चट कर जा,अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।
ओबामाः लेकिन वो तो जनता का पैसा है, उसे हजम कैसे करूंगा ? और फिर जब सवाल उठेंगे तो जनता को क्या जवाब दूंगा ?
मायाः सच में तू रोबामा है,हम लोगों की तरह काम कर न,देख मेरे लालू भइया ने इतना बड़ा चारा घोटाला किया,चारा के साथ इतना पैसा लील गए और उन्हें डकार तक नहीं आई।
मुझे ही देख ताज कारीडोर मामले में हजारों करोड़ रुपए दबाए बैठी हूं,लेकिन मुझे देखकर कहीं से लगता है कि मुझे डाइजेशन की समस्या है।
ओबामाः लेकिन आपके देश में आपकी जनता मंदी से मरी जा रही है,और जनता सवाल भी उठा रही है, देश की दूसरी राजनीतिक पार्टीयां भी हल्ला कर रही हैं उनका क्या ?
मायाः तो मरने दे न,तू क्यों मरा जा रहा है,राजनीतिक पार्टी से मुझे कुछ लेना देना नहीं,मंदी देश पर है, मुझ पर नहीं, मेरे हाथी को देख मेरी तरह खाए पिए मस्त है।रही हल्ला की बात तो तूने तो सुना ही होगा कि लोगों के भौकने से हाथी पर कोई असर नहीं होता।
ओबामाः सही कहा अब तुम्हारी रणनीति मैं भी अपनाउंगा,
अरे,तुमने सुना हमारे देश ने एक नई थेरेपी को ईजाद किया है,ये थेरेपी लोगों को बेशर्म बनाएगी,यानि ऐसे लोग जिनको कुछ कहने में या करनें में हेजि़टेशन होती है,उनके लिए ये मशीन कारगर है।अगर बेशर्म बनना हो, तो आओ तीन महीने का कोर्स कर जाओ.
मायाः नहीं यार, तुमने ये तकनीक अब बनाई है,हमारे देश के नेता बहुत पहले से इस थेरेपी का कोर्स कर रहें हैं,बल्कि सही बात तो ये है कि बगैर ये कोर्स किये किसी को राजनीति में आने की इजाज़त नहीं है.
ओबामाः सही कहा,अब मैं भी तुम्हारे नक्शे कदम पर चलूंगा.
मायाः समझदार है तू अब गोबामा गो.

और दोनों ने अपने अपने फोन को आराम दे दिया..

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

एक दिन मेरे एक मित्र मेरे पास आए,
अकुलाए ,बौखलाए
बोले कविराज,
गर्लफ्रेंड और बीवी के बीच की पर्त हटाइए,
मुझे बेगम का अर्थ बताइए,
हम बोले महोदय,
गर्लफ्रेंड वो है जो एक नज़र से करती है कई शिकार,
मेरे और तुम्हारे जैसे ढेर सारे होते हैं उसके यार,
उसके आंखों में ख्वाबों का पुलिंदा पलता है
और ब्वायफ्रेंड के पैसे से ही तो उसका खर्चा चलता है.
और यार..
घोड़ी पे होके सवार चला है दूल्हा यार कमरिया में बांधे तलवार,
इस गाने का अर्थ जनता समझ नहीं पाती है,
सिर्फ गाती जाती है गाती जाती है,
असल में कमरिया पे बंधी तलवार बीवी ही चलाती है,
ग़मों की सौगात साथ में लाती है,
पति का निकाल देती है दम
और ख़ुद बन जाती है बे-गम,
हमने कहा मित्र,
समझे कि समझाऊं,या विस्तार पूर्वक बताऊं
उन्होने कहा कविराज,जरा डिटेल में बताइए
मैने कहा अच्छा,फिर मेरे और करीब आ जाइए
वो बोले नहीं,मैं नजदीक नहीं आउंगा
जमाना खराब है पता नही कहां धोखा खा जाउंगा
अब तक सीधा साधा बैठा था अब उठकर अकड़ गया
और बोला कवि महोदय आपने तो सुना ही होगा
मां का लाडला बिगड़ गया
मां का लाडला बिगड़ गया

सोमवार, 26 जनवरी 2009

ये हमारा वतन हमको प्यारा वतन
इससे ज्यादा हमें कोई प्यारा नहीं

लड़ के पाए हैं आज़ादी हम दोस्तों
होके आज़ाद लड़ना गवारा नहीं

हम लड़े हैं सदा धर्म पर जाति पर
बांटना देश को अब दोबारा नहीं

ये हमारा वतन हमको प्यारा वतन
इससे ज्यादा हमें कोई प्यारा नहीं

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

सिहरन भरी रातों में भी जलता रहा दिया,
कोहरे के बीच फंस के तड़पता रहा दिया

मंज़िल पता नहीं है और रस्ते भी हैं कठिन,
इस कशमकश बीच भी चलता रहा दिया

बारिश कभी बिजली कभी आंधी कभी बौछार
तूफानों से लड़ लड़ के मचलता रहा दिया

सिहरन भरी रातों में भी जलता रहा दिया,
कोहरे के बीच फंस के तड़पता रहा दिया

रविवार, 11 जनवरी 2009

ख्वाबों में आते जाते रहे तुम तो रातभर,
हमको यूं ही तड़पाते रहे तुम तो रातभर

बन के शमां तुम आ गए ख्वाबों में आज फिर,
परवाने को जलाते रहे तुम तो रातभर

उम्मीद थी की जख्मों पे मरहम लगाओगे,
निर्मम से मुस्कुराते रहे तुम तो रातभर

तुमको गज़ल बना दिया शब्दों के फेर से,
और फिर गज़ल को गाते रहे हम तो रातभर

शनिवार, 3 जनवरी 2009

मुझे देवता मत बनाओ,
क्यों की,
मै देखता हूँ देवता का हश्र,
महसूस करता हूँ उसकी पीडा ,
जो इंसानी प्रदत्त है।
मै तो बने रहना चाहता हूँ ,
एक सामान्य सरल सा इन्सान।
जिसके अन्दर छल,कपट,द्वेष,तृष्णा हो।
यथार्थता से परे जीवन जीने की कला हो।
जो मौके पर ईमानदार बनकर ,
अपना काम निकल सके,
पहनकर मुखौटा सच्चाई का ,
बेईमानी की बिसात पर ,
जिंदगी की चाल चले ,
और परास्त कर दे इंसानी प्रवित्ति को .