गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

अलविदा २००९...

नव वर्ष आ गया है नवल चाह को लेकर,
नव गीत रीति नीति नवल राह को लेकर !
सब कुछ नया नया सा लगे नवल वर्ष में,
जीवन की बंदिशों में नव प्रवाह को लेकर !!
उम्मीदों के ताने बाने में उलझा ,अपनी उपस्थिति का एहसास कराने के लिए तैयार है एक और नया वर्ष!
समृद्धि का पर्याय बनकर बिलकुल समीप खड़ा है एक और नया वर्ष! ठीक उसी तरह जैसे कुछ महीने पहले इन्ही सर्दियों में आया था वर्ष २००९,नया बनके,लेकिन वो बीता हुआ कल हो गया है,अब वह नवीन वर्ष नहीं है,बल्कि उस सरहद के अंतिम छोर पर खड़ा है,जंहा से वह कभी वापस नहीं आएगा,आएँगी तो सिर्फ वर्ष २००९ की यादें!
परिवर्तन ने एक बार फिर अपने पंखो को परवाज़ दी और समय की सीढ़ियों से सरक गया एक और साल,बिलकुल वैसे,जैसे बंद मुट्ठी से सरक जाते हैं रेत के कण !सिन्दूरी शाम ने पृथ्वी को अपनी आगोश में ले रखा है,२००९ का अंतिम सूरज भरी मन और थके कदम से धीरे धीरे अस्त होने के लिए जा रहा है!
कल की सुबह २०१० के सूरज के साथ होगी जो अपने साथ नए विश्वास को लेकर निकलेगा!न जाने क्यों आशावादी विचारधाराएँ मस्तिष्क में कौंध रही हैं आशान्वित हैं हम की आने वाला साल उन सभी जख्मो पर मरहम लगाएगा जो २००९ ने हमें दिए हैं!उम्मीदों का पिटारा एक बार फिर खुलेगा और और उस जादुई पिटारे से निकलेगा कोई देवदूत,जो जीवन की परिकल्पना को साकार करेगा और स्नेह के उत्कर्ष में गोते लगा सकेगा मेरे और आपके जैसा इन्सान!कुल मिलाकर नए साल के स्वागत के लिए तैयार हैं हम सब,वैसे भी स्वागत करना हमारी संस्कृति है,हमारी परम्पराओं का हिस्सा है,स्वागत शब्द हमारी रगों में लहू बनकर दौड़ता है! इतिहास गवाह है,हमने हर नए आगंतुक के स्वागत में पलक पावडे बिछाए हैं,उनका सत्कार किया है! ये अलग बात है की कभी कभी इन्ही मेहमानों ने हमारी जिंदगी के कुछ पन्नो में गम की इबादत लिख दी है! जिन्हें याद करने के बाद अनायास ही पलकें भारी हो जाती हैं,या यूँ कहें की कुछ पल परेशानियों के बेताल बनकर हमारी पीठ पर लद गए हैं,और हम विक्रम बनकर वर्ष-दर-वर्ष उन्हें ढोते चले आ रहे हैं! वर्ष २००८ का नवम्बर महीना आज भी हमें डराता है,हमने नहीं सोचा था की जिस २००८ के आने का जश्न हमने जोर शोर से मनाया था ,जिस २००८ की मेहमान नवाजी हमने लोगों को शुभकामनायें देकर की थी ,वही २००८ जाते जाते दे जायेगा एक मनहूस तारीख जो जब जब याद आएगी तब तब मुस्कान को भी आंसू आयेंगे!कुछ खट्टे मीठे अनुभव के साथ आख़िरकार बीत गया २००९ भी! बीते हुए लम्हे को याद करके उसकी परिभाषा को कुछ यूँ पिरोया है मशहूर शायर निदा फाजली ने " जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नयी जाता "
जिस साल की उम्र सिर्फ एक दिन बाकी है वह बीत तो जायेगा लेकिन गुजरेगा नहीं क्यों की उसकी मधुरता और कसक यादों में ही सही पर साँस लेगी.....