गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

इलाहाबाद के अमरुद

अमे यार इलाहाबाद के अमरुद की बहुत याद आय रही है, यह समय बागिन में अमरुद खाय लायक होई गा होइहैं। रामबाग में जब हम लोग सनीमा देखै जात रहे ललका अमरुद खाए का आनंद आवत रहा। हियाँ ससुर दुई साल होई गा इलाहाबाद के अमरुद का दर्शन नहीं कई पावा। बरेली आई के जिनगी क बहुत अनमोल यादिन सतावत थीन। एही बार माघमेला में चांस लगाई के कौनिउ सूरत में इलाहाबाद पहुंचे का है.....संगम की रेती का मजा और अमरुद का स्वाद बहुत याद आवत अहै....

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

मुझे शर्म नहीं आती....


मेरे गांव में एक कहावत कही जाती है,सौ सौ जूता खाय तमाशा घुस के देखयये कहवत उन लोगों के लिए कही जाती है जो बेशर्मियत के चुल्लू में परिवार रिश्तेदार  सहित नहाते हैं और बगैर डूबे वापस निकल आते हैं...इन लोगों को देखकर मुझे शर्म नहीं आतीहां मुझे बिलकुल भी शर्म नहीं आती...और शर्म न आने की सबसे बड़ी वजह है मेरा देश...भारत हिंदुस्तान आर्यावर्त और इंडिया के अलावा इस देश का एक और नाम है और वो नाम है घोटालिस्तान...इस घोटालिस्तान में ऐसे ऐसे घोटालाबाज पैदा हुए हैं,जिन्होंने हरामखोरियत की पराकाष्ठा पर जमकर चहलकदमी की है...
इस देश ने एक तरफ जहां ददुआ,ठोकिया,विरप्पन,दाउद,छोटा राजन और सलेम जैसे आंख के तारे पैदा किए हैं तो दूसरी तरफ ए.राजा,अशोक चव्हाण.लालू यादव,मायावती जैसे नेता भी पैदा किए हैं जो देश के दिल में पेसमेकर बने बैठे हैं,और देश की धड़कन को कंट्रोल कर रहें हैं...अब इतने महान लोगों को शर्म नहीं आती तो इन्हें देखकर मुझे भी शर्म नहीं आती...जब गरीबों के हक की भूख बाजार में नीलाम करने वाले सौदागरों को शरम नहीं आती... जब गरीबों क अनाज को घोटालेबाजों ने अपना निवाला बना लिया....जो अनाज पीडीएस के जरिए गरीबों में बांटने के लिए भेजा गया था उसे घोटालेबाजों ने बांग्लादेश और नेपाल में बेच दिया...जो अनाज फूड फॉर वर्क के तहत गरीबों का पेट भरने के लिए था उसे उत्तर प्रदेश के नेता, बाबू मिलकर गटक गए....जब उन्हें शर्म नहीं आई तो मुझे शर्म क्यों आएगी...जब महाराष्ट्र सरकार के भ्रष्ट नेताओं को शर्म नहीं आई जिन्होंने देश पर प्राण त्याग देने वाले शहीदों के हक पर अपनी बपौती बना ली, जब उन्हें शर्म नहीं आई तो मुझे शर्म क्यों आएगी... महाराष्ट्र सरकार के भ्रष्ट नेताओं ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों को इस घोटाले की मार्फत अपने खास अंदाज में श्रद्धांजलि दी है। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, खाद्यान्न घोटाला और राष्ट्रमंडल खेल घोटाला तो वर्तमान यूपीए सरकार की उपलब्धियों में शुमार हैं ही,इसके अलावा पिछले एक दशक में हमने प्रसिद्ध केतन पारिख घोटाले, मधु कोड़ा घोटाले, चारा घोटाले, आईपीएल घोटाले, सीडब्ल्यूजी घोटाले से दो चार हुए हैं...इन घोटालों में इतने रुपयों का हेर फेर हुआ है कि मैं गिनती नहीं लिख सकता...या यूं कहें कि मेरी गणित इतनी कमजोर है कि मैं हेजीटेट हो रहा हूं लिखने में कि कहीं एकाद शून्य कम न लिख दूं...
मौजूदा दौर को देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि नैतिकता ताक पर रख दी गई है। इस वक्त जो नैतिकता पर हावी है या फिर कहे की शक्तिमान है थ्री-पी (3P) यानी पॉवर, पैसा और पॉलिटिक्स। वर्तमान समय में थ्री-पी शक्तिशाली है, ऐसे में जनसरोकार की बाते बेईमानी और बौनी नजर आती है। जो शक्तिशाली होता है वही इतिहास लिखता है और नायक, नायिका और खलनायक वही तय करता है। इसलिए सर्वमान्य नायकों-नायिकाओं की तलाश इतिहास में नहीं करनी चाहिए। लेकिन देश में भ्रष्टाचार का जो आलम है ऐसे वक्त में जेपी (जय प्रकाश नारायण) की याद आती है। 1977 में सत्ता के खिलाफ चलाया गया आंदोलन सिर्फ इमरजेंसी के खिलाफ ही नहीं था, बल्कि इस आंदोलन को जनता का जनसमर्थन मिला क्योंकि यह आंदोलन सत्ता में मौजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ भी था।
थोड़ा बोरिंग लगेगा लेकिन एक नजर आजादी के बाद से अबतक के बड़े घोटालों पर डाल लेते हैं- जीप घोटाला (1948), साइकिल आयात घोटाला (1951), मुंध्रा मैस (1957-58), तेजा लोन (1960), पटनायक मामला (1965), नागरावाला घोटाला (1971), मारूति घोटाला (1976), कुओ ऑयल डील (1976), अंतुले ट्रस्ट (1981), एचडीडब्ल्यू सबमरीन घोटाला (1987), बिटुमेन घोटाला, तांसी भूमि घोटाला, सेंट किट्स केस (1989), अनंतनाग ट्रांसपोर्ट सब्सिडी स्कैम, चुरहट लॉटरी स्कैम, बोफोर्स घोटाला (1986), एयरबस स्कैंडल (1990), इंडियन बैंक घोटाला (1992), हर्षद मेहता घोटाला (1992), सिक्योरिटी स्कैम (1992), सिक्योरिटी स्कैम (1992), जैन (हवाला) डायरी कांड (1993), चीनी आयात (1994), बैंगलोर-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर (1995), जेएमएम सांसद घूसकांड (1995 ), यूरिया घोटाला (1996), संचार घोटाला (1996), चारा घोटाला (1996), यूरिया (1996), लखुभाई पाठक पेपर स्कैम (1996), ताबूत घोटाला (1999) मैच फिक्सिंग (2000), यूटीआई घोटाला, केतन पारेख कांड (2001), बराक मिसाइल डील, तहलका स्कैंडल (2001), होम ट्रेड घोटाला (2002), तेलगी स्टाम्प स्कैंडल (2003), तेल के बदले अनाज कार्यक्रम ( 2005), कैश फॉर वोट स्कैंडल (2008), सत्यम घोटाला (2008),मधुकोड़ा मामला (2008), आदर्श सोसाइटी मामला (2010), कॉमनवेल्थ घोटाला (2010), 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला।          

कभी बाबूओं, नेताओं और कारोबारियों की तिकड़ी गरीबों का हजारों टन अनाज सालों तक उड़ाती रहती है और किसी को भनक तक नहीं लगती. तो कभी अनाज से भरे गोदाम के गोदाम सड़ जाते हैं और किसी को फिक्र नहीं होती... इतना कुछ कहने के बाद अब तो आप समझ ही गए होंगे कि मुझे शर्म क्यों नहीं आती...मुझे आती है सिर्फ एक सोच, जो विवश करती है ये बात सोचने पर कि आखिर क्यों हमारा देश गरीब है...
आपका बेशर्म...।