याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा ।
अब तक तो सहते आए हैं ,
अब और नही सह पाएंगे ,
हिंसा से अब तक दूर रहे,
अब और नही रह पाएंगे
मारेंगे या मर जायेंगे ,
जन जन का ये ही प्रण होगा।
याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा ।
हमने देखें हैं आसमान से
टूट के गिरते तारों को ,
लुटती अस्मत माताओं की
यतीम बच्चे बेचारों को
लाचार नही अब द्रौपदी भी
अब न ही चीर हरण होगा।
याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा ।
आतंक की आंधी के समक्ष
उम्मीद के दिए जलाये हैं ,
तुफानो से लड़ने के लिए
सीना फौलादी लाये हैं ,
भारत माँ की पवन भूमि पर
फिर से जनगनमन होगा ।
याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा ।
बकबक,बतकही,बैठकबाजी और उल जुलूल बातों से निकली कुछ नई विचारधाराओं का संयोग किसी लंतरान को जन्म देता है । इलाहाबाद ने कई लंतराम जन्में हैं चाहे वो बच्चन हों,कमलेश्नर हों,फिराक हों,या फिर अकबर इलाहाबादी हों...इन्ही लंतरानों की परिपाटी और धाती को संजोने के लिए निकला हूं अपने साथ लंतरानों की फौज लेकर...।
गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
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