शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

अपना मोहल्ला


होती थी अपनी शाम कभी इसी मोहल्ले में ,

मिलते थे दोस्त तमाम कभी इसी मोहल्ले में ,


मेरे दोस्त यार सब आते थे ,

कमरे में शोर मचाते थे ,

सुन कर उन सबका चिल्लाना ,

सारे पड़ोसी गरियाते थे ,

रंगीन थी अपनी शाम कभी इसी मोहल्ले में

होती थी अपनी शाम कभी इसी मोहल्लें में .

बुधवार, 10 सितंबर 2008

mai chahunga

मै चाहूँगा की तुमसे मेरी आँखें चार हो जाए ,
किसी भी मोड़ पे तुमसे मेरी तकरार हो जाए .
तुम्हारा दिल जो पत्थर है तो सुन लो ये ख़बर तुम भी ,
मुहब्बत का मै खंजर हूँ जो दिल के पर हो जाए .
न देखो गिद्ध की नजरो से हमको तुम मेरे हम दम ,
मै हूँ वो शख्श जिसपे वार सब बेकार हो जाए ।
न डूबेगी मेरी कश्ती बचा लूँगा ये निश्चित है ,
मगर ये शर्त भी है तू अगर पतवार हो जाए ।
मै चाहूँगा की तुमसे ..............................................