शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

अपना मोहल्ला


होती थी अपनी शाम कभी इसी मोहल्ले में ,

मिलते थे दोस्त तमाम कभी इसी मोहल्ले में ,


मेरे दोस्त यार सब आते थे ,

कमरे में शोर मचाते थे ,

सुन कर उन सबका चिल्लाना ,

सारे पड़ोसी गरियाते थे ,

रंगीन थी अपनी शाम कभी इसी मोहल्ले में

होती थी अपनी शाम कभी इसी मोहल्लें में .

2 टिप्‍पणियां:

gauravgaurav ने कहा…

shayad tumhe pata nahi hai ki main bhi ise mohalle mein rahta tha.

Unknown ने कहा…

Bade yaad ate hain o bite hue lamhe. Aise me man yahi kahta hai koi lauta de mere bite hue din.