ये हमारा वतन हमको प्यारा वतन
इससे ज्यादा हमें कोई प्यारा नहीं
लड़ के पाए हैं आज़ादी हम दोस्तों
होके आज़ाद लड़ना गवारा नहीं
हम लड़े हैं सदा धर्म पर जाति पर
बांटना देश को अब दोबारा नहीं
ये हमारा वतन हमको प्यारा वतन
इससे ज्यादा हमें कोई प्यारा नहीं
बकबक,बतकही,बैठकबाजी और उल जुलूल बातों से निकली कुछ नई विचारधाराओं का संयोग किसी लंतरान को जन्म देता है । इलाहाबाद ने कई लंतराम जन्में हैं चाहे वो बच्चन हों,कमलेश्नर हों,फिराक हों,या फिर अकबर इलाहाबादी हों...इन्ही लंतरानों की परिपाटी और धाती को संजोने के लिए निकला हूं अपने साथ लंतरानों की फौज लेकर...।
सोमवार, 26 जनवरी 2009
मंगलवार, 13 जनवरी 2009
रविवार, 11 जनवरी 2009
शनिवार, 3 जनवरी 2009
मुझे देवता मत बनाओ,
क्यों की,
मै देखता हूँ देवता का हश्र,
महसूस करता हूँ उसकी पीडा ,
जो इंसानी प्रदत्त है।
मै तो बने रहना चाहता हूँ ,
एक सामान्य सरल सा इन्सान।
जिसके अन्दर छल,कपट,द्वेष,तृष्णा हो।
यथार्थता से परे जीवन जीने की कला हो।
जो मौके पर ईमानदार बनकर ,
अपना काम निकल सके,
पहनकर मुखौटा सच्चाई का ,
बेईमानी की बिसात पर ,
जिंदगी की चाल चले ,
और परास्त कर दे इंसानी प्रवित्ति को .
क्यों की,
मै देखता हूँ देवता का हश्र,
महसूस करता हूँ उसकी पीडा ,
जो इंसानी प्रदत्त है।
मै तो बने रहना चाहता हूँ ,
एक सामान्य सरल सा इन्सान।
जिसके अन्दर छल,कपट,द्वेष,तृष्णा हो।
यथार्थता से परे जीवन जीने की कला हो।
जो मौके पर ईमानदार बनकर ,
अपना काम निकल सके,
पहनकर मुखौटा सच्चाई का ,
बेईमानी की बिसात पर ,
जिंदगी की चाल चले ,
और परास्त कर दे इंसानी प्रवित्ति को .
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