रविवार, 11 जनवरी 2009

ख्वाबों में आते जाते रहे तुम तो रातभर,
हमको यूं ही तड़पाते रहे तुम तो रातभर

बन के शमां तुम आ गए ख्वाबों में आज फिर,
परवाने को जलाते रहे तुम तो रातभर

उम्मीद थी की जख्मों पे मरहम लगाओगे,
निर्मम से मुस्कुराते रहे तुम तो रातभर

तुमको गज़ल बना दिया शब्दों के फेर से,
और फिर गज़ल को गाते रहे हम तो रातभर

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

waah bahut khub