शनिवार, 3 जनवरी 2009

मुझे देवता मत बनाओ,
क्यों की,
मै देखता हूँ देवता का हश्र,
महसूस करता हूँ उसकी पीडा ,
जो इंसानी प्रदत्त है।
मै तो बने रहना चाहता हूँ ,
एक सामान्य सरल सा इन्सान।
जिसके अन्दर छल,कपट,द्वेष,तृष्णा हो।
यथार्थता से परे जीवन जीने की कला हो।
जो मौके पर ईमानदार बनकर ,
अपना काम निकल सके,
पहनकर मुखौटा सच्चाई का ,
बेईमानी की बिसात पर ,
जिंदगी की चाल चले ,
और परास्त कर दे इंसानी प्रवित्ति को .

1 टिप्पणी:

allahabadi andaaz ने कहा…

वाकई, दिल से लिखा है हर लफ़्ज तुमने,यूं ही लिखते रहो...माशा-अल्लाह !