रविवार, 22 अगस्त 2010

जूते का सम्मान करो पार्ट 2

हां भाई! हम भी तो यही कह रहें हैं कि जूतों का सम्मान करो, क्यों की जूते का सम्मान तो आदि अनंत काल से होता आ रहा है,फर्क सिर्फ इतना है कि पहले जूते को खड़ाउं या चरण पादुका कहा जाता था और आज चरण पादुका ने जूते की शक्ल ले ली है...। आपको याद होगा भरत ने श्री राम चंद्र का जूता मतलब चरण पादुका माथे पर लगा कर लाए थे और अयोध्या के सिंहासन पर रख दिया था..उस वक्त जूते की ही औकात से पूरा राज्य चलता था।
 जमाने ने रंगत बदली तो जूते की औकात में भी बदलाव आया, अनायास ही नहीं है कि हिंदुओं के विवाह संस्कार में जूते चुराने की रस्म को खास तवज्जो दिया गया है, जिसकी शादी में सालियां जूते न चुराएं,तो उस इंसान की सारी जिंदगी इस टीस में गुज़र जाती है कि काश मेरा भी जूता चोरी हुआ होता। जूते की औकात को हिंदी साहित्य ने भी बाखूब पहचाना यही वजह थी कि मुंशी प्रेमचंद्र ने भी अपनी एक कहानी में बताया कि एक आदमी को जूता किस हद तक परेशान कर सकता है,कहानी का थोड़ा सा जिक्र करता हूं, “एक गरीब आदमी रहता है उसके पास एक ही जूता होता है,जूता रोज कहीं न कहीं से फट जाता है,गरीब आदमी जो भी थोड़े बहुत रुपए कमाता है वो जूते सिलाने में ही खर्च हो जाते हैं,एक दिन आदमी झल्ला जाता है और सोचता है साला जूता है कि बवाल...और और जूते को घर के बाहर फेंकता है,संयोग की बात कि जूता बाहर जा रहे एक आदमी को लगता है और वो आदमी वहीं मर जाता है.. “लो भइया करने चले थे होम मगर हाथ जल गए” जूते की इज्ज़त नहीं की उसने, जूते ने लंका लगा कर रख दी, न घर का छोड़ा न घाट का।

जूते से सिर्फ साहित्य ही नहीं फिल्म जगत भी काफी आकर्षित रहा है । याद कीजिए राजकपूर का जूता, “मेरा जूता है जापानी वाला” या फिर हम आपके हैं कौन का, “जूते दे दो पैसे ले लो वाला गीत” ।

कहने का मतलब ये है कि जूता की अहमियत को हर किसी ने पहचाना हैं गंवई परिवेश में तो जूते ने न जाने कितने आई.ए.एस, पी.सी.एस बना दिए,अगर बच्चा स्कूल न जाए तो अभिभावक बच्चे को रौबीले अंदाज़ में कहता है “चुपचाप चले जाव स्कूल नहीं तव उतारा जूता न” जूते का दम तो देखिए बच्चा खट से स्कूल के लिए तैयार हो जाता है। लोफर लफंगे लड़कों के लिए गांव के बड़े बुज़ुर्गों के मुंह से अक्सर सुनने को मिलता है “फलाने के लउंडा बहुत उड़त है, आपा मा नहीं आय, भिगाय के बीस जूता परय तव अपने आप मियान मां आय जाय, साथ बैठे दूसरे चाचा कहेंगे अच्छा भिगोवा जूता होय सारे के बरे” मतलब साफ है कि जूता हमेशा से समाज सुधारक का काम करता आया है,लोगों ने इसके महत्व को समझा भी है ये नेता ही मुई ऐसी जात है जिसके भेजे में बात घुसती नहीं हैं...प्रभु संकेत दे रहें हैं बार बार कभी चिदंबरम के बगल से गुज़रे तो कभी उमर अब्दुल्ला के ऊपर से। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जब जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं किसी न किसी रुप में पृथ्वी पर अवतार लूंगा....हो न हो कलयुग में भगवान कहीं जूते के रुप में तो नहीं.....

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

भई वाह।
अथ श्री जूताय वर्णन।
जूता जी की जय।

ख़बरची ख़बरदार ने कहा…

जय हो..सरजी सारा जग जूता जूता दिख रहा है..जैसे सावन के अंधे को हरा हरा दिखता है...यह पढ़कर मैं भी जूते का अंधा हो गया....

बेनामी ने कहा…

“फलाने के लउंडा बहुत उड़त है, आपा मा नहीं आय, भिगाय के बीस जूता परय तव अपने आप मियान मां आय जाय, साथ बैठे दूसरे चाचा कहेंगे अच्छा भिगोवा जूता होय सारे के बरे”
ha ha ha ha bahut badhiya....

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खूब भईया ।