गुरुवार, 19 अगस्त 2010

मिस यू मूंबई...

इस तस्वीर को सिर्फ एक झलक देखिए,हो सकता है कि आप इस रेलवे स्टेशन का नाम न बता सकें,लेकिन इतना तो ज़रुर बता देंगें कि यह लोकल ट्रेन खड़ी है, और यह नज़ारा मुंबई के किसी स्टेशन का हो सकता है...।
अब ज़रा गौर से इस नीचे वाली तस्वीर को देखिए क्या आप बता सकते हैं कि यह तस्वीर कहां कि है?
चलिए मैं बताता हूं
सबसे उपर जो तस्वीर है वो मुंबई के सीएसटी रेलवे स्टेशन पर खड़ी लोकल ट्रेन ही है,और नीचे की ये तस्वीर दिल्ली की हाईटेक मेट्रो ट्रेन है जो राजीव चौक स्टेशन पर अपने गुजरने के इंतज़ार में खड़ी हैं।
..मेट्रों में सफर करने वाले कुछ इस तरह सफर करते हैं..
जबकि मुंबई में लोकल में सफर करने वाले मुसाफिर कुछ यूं पहुंचते हैं अपनी मंजिल तक।

एक साल पहले मुंबई की भागती दौड़ती ज़िंदगी का हिस्सा मैं भी था रोज बोरिवली से सीएसटी तक फास्ट ट्रेन पकड़ता था लेकिन जिस दिन मैं विरार वाली ट्रेन पकड़ लेता था और सीएसटी तक जाता था उस दिन ज़िंदगी का एक नया मज़ा मिलता था,विरार टू सिएसटी की जगह इस ट्रेन का नाम कयामत से कयामत तक होना चहिए,एक साल तक रोज आते जाते न जाने कितने अंजान चेहरे दोस्त बन गए थे सुमित भाई,श्रीकांत,अजित सर और बहुत सारे...।
लेकिन अब मुंबई नहीं रहा या यूं कहें कि अब मैं मुंबई में नहीं रहा...अब मैं रसूखदारों के शहर,दिलवालों के शहर,दिल्ली में हूं...और लोकल की जगह हाईटेक मेट्रों ने ले ली है,राजीव चौक से पटेल चौक तक रोज के सफर में अब कुछ लोग मिलने लगे हैं जो रोज ही मिल जाते हैं,कुछ देखकर मुस्कुराने भी लगे हैं लोकल की तरह राहगीरों का अभी गुट नहीं बना, न ही सीट निर्धारित हुई है कि कौन कहां बैठेगा...आज आफिस के लिए निकला बाहर बारिश हो रही थी मेट्रों में गजब की भीड़ थी,अंदर घुसते ही लगा लोकल में आ ही गया हूं मेट्रों की छत से जगह जगह पानी टपक रहा था...हर दूसरा आदमी पहले आदमी की गर्म सांसे साफ तौर पर महसूस कर रहा था...बार बार मुंबई याद आ रहा था हर बार हर स्टेशन पर ऐसा लग रहा था मानों सीएसटी आने वाला है ।

8 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

होता है, ऐसा भी होता है।

Unknown ने कहा…

such men yar mumbai bahut yad aati hai...

Unknown ने कहा…

सच में यार मुंबई जैसा शहर नहीं है कहीं...याद है आज भी नरीमन की बैठकी।

Unknown ने कहा…

such men yar mumbai ki bahut yad aati hai...

Unknown ने कहा…

अब कुछ लोग मिलने लगे हैं जो रोज ही मिल जाते हैं,कुछ देखकर मुस्कुराने भी लगे हैं...


अबे कौन लोग हैं ये..जो मुस्कुराने लगे हैं...

Unknown ने कहा…

अब कुछ लोग मिलने लगे हैं जो रोज ही मिल जाते हैं,कुछ देखकर मुस्कुराने भी लगे हैं...


अबे कौन लोग हैं ये..जो मुस्कुराने लगे हैं...

shrikant dave ने कहा…

chalo bahi dekh kar kush hua hame bhi yaad kiya mumbai me to loge apno ko bhul jate he lakin tumene hame tahe dil se yaad kiya uska jawab nahi ajit tumne dosti ki asi dori se bandha he me zindgi bher is dori se bandh rahana chatha hu ...baki to waqt bathayega ha dahisar staison par meri nazer kisi ko dondthi nazar aathi he lakin fir train chali hamari nighe tub bhi taktakilagaye dekhti rahti he ...

अजित त्रिपाठी ने कहा…

dhnyavad shrikant bhai!
tum hamesha yad aaoge yar mai duniya ke kisi bhi kone men kyo na rahu...
vada hai tumse!