गुरुवार, 19 अगस्त 2010

दारू का प्रपंचः ड्रिंकिंग यस ऑर नो

दारू के बारे में कई कहावतें मशहूर है और कई किस्से सुने जाते हैं. सुना है कि वैदिक काल में इसे सोमरस नाम से जाना जाता था और जश्न मनाते वक्त इसका जमकर

दोहन होता था। दीरू की लत जिसे लग जाए, वो अपना घरबार तक बेच देता है। वैसे अभी तक दारू से मेरा नैन मटक्का वाला नाता रहा है। इस अंगूर की बेटी के मुहब्बत में कइयों की बरबादी के किस्से सुने हैं। हर गली मुहल्ले में इसका एक वर्ल्ड फेमस आशिक होता है। लोग दारू पीने पिलाने में उस आशिक का जिक्र जरूर करते हैं।

किसी को नई नई लत लगी हो तो उस आशिक का नाम लेकर आगाह भी किया जाता है कि हालत उसके जैसी ही हो जाएगी, इससे उलट हर नया पियक्कड़ उस वर्ल्ड फेमस दारू के आशिक को मन ही मन अपना गुरु मान लेता है। खैर ये तो रहे गली मुहल्ले में दारू के चर्चे।

थोड़ा और विस्तार देते हैं, इसे पीने के भी कई स्टाइल बनाए गए हैं। एक तो हमारा पटियाला पेग है भाई, सुना है इसमें दारूबाज लोग पानी और शराब की कई परतें बनाते हैं। चीन में तो गिलासी (गिलास का बच्चा) में दारू पी जाती है। चावल की बनी ये दारू चीनी लोग बिना संभले ही पीते हैं, एक बार में एक गिलासी पेग खत्म। इसका एक किसिम है शैंपेन, साला इसके तो हिलाहिलाकर पीते है।

अगला प्रपंच शुरू करते हैः दारू बिकने का स्टाइलः छत्तीसगढ़ में मुझे एक व्यक्ति मिला, जो भोर में चार बजे ही उठ जाता था और सांस लेने से ज्यादा जरूरी दारू पीना समझता था। सुबह दारू पीने के लिए उसे रात को ही इसका इंतजाम करना पड़ता था। रात को एक पव्वा ले आता और सुबह होते ही इसका पेग लगा लेता। छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानें रात के ग्यारह बजे बंद होतीं तो सुबह ग्यारह बजे से पहले खुलना नामुमकिन था। (वैसे दारू जगत में नामुमकिन कुछ भी नहीं होता)। मतलब कि अगर छत्तीसगढ़ में सुबह सुबह पीनी है तो रात के ग्यारह बजे से पहले खरीदो और स्टोर करके रखो सुबह तक। लेकिन हरियाणा में ऐसी समस्या नही है। यहां ताऊ रात को ग्यारह बजे सरकार के लिए बंद करता है, बारह बजे जनता के लिए बंद करता है और एक दो बजे तक पियक्कड़ों के लिए बंद करता है और रात को दुकान में ही सो जाता है। सुबह जैसे ही नींद खुली, शटर उठाकर फिर सो जाता है, मतलब कि भोर में तो नहीं, लेकिन सुबह सुबह किसी के भी पीने की इच्छा पूरी हो सकती है। इसके अलावा गुजरात में मोदी भाई ने तो पूरा बैन कर दिया है, लेकिन जब गुजराती को पीने की लत लगती है तो वह यो तो राजस्थान या फिर महाराष्ट्र की तरफ भागता है और जो गुजराती बाहर नहीं निकल पाता, वह मोदी भाई को शराप कर शराब की लत को दबा ले जाता है।

ये सब तो पुरानी बातें हुईंः नई बात ये है बाबा कि आजकल, नौकरी के लिए जाओ तो पीने के शौकीन बॉस लोग ये जरूर पूछते हैं कि पीते हो या नहीं। कम से कम नब्बे प्रतिशत बॉस के लिए यह प्रश्न सामान्य हो चुका है। उन्हें भी लगता है कि नया बंदा आएगा तो उसे पीने पिलाने और फिर उससे बोतल मंगाने की भी पहले क्लीअर कर ही ली जाए। इसके अलावा सोशल साइट्स ने तो बाकायदा एक कालम दे रखा हैः स्मोकिंग- यस आर नो, ड्रिंकिंगः यस आर नो..मतलब हर तरफ पियक्कड़ों के लिए एक अलग और सशक्त समुदाय बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

सभी पियक्कड़ों को पता है और इतिहास भी गवाह है कि दारूबाजों को हमेशा उनके घरवालों और समाज के लोगों ने ताना दे दे कर बहुत सताया है। हर य़ुग के दारूबाजों के केवल उलाहना ही मिली है, इसीलिए आज के दारूबाज लोग कोई भी मिलता है तो यह क्लीअर करने की कोशिश करते हैं कि साला पीता हो तो अपनी पार्टी में शामिल करो, नहीं तो अपने लिए किसी काम का नहीं, बाद में विद्रोही भी साबित हो सकता है। सभी दारूबाज अपने लिए एक सशक्त समाज की स्थापना करने में लगे हैं। अगर आप भी दारूबाज हो तो इस समाज में आपका भी स्वागत है..तो बताओ ड्रिंकिंगः यस आर नो।

2 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

तो बताओ ड्रिंकिंगः यस आर नो।

भाई हमारा जवाब तो नो में है ....लेकिन कोई दारू पीकर देश भक्ति वाले काम को अंजाम देता है जैसे किसी भ्रष्टाचारी का पोल खोलना ,किसी मंत्री के कुकर्मों की चर्चा पूरे समाज में करना ...तो उसका स्वागत है ,जिसकी संभावना बहुत ही कम है ...

अजित त्रिपाठी ने कहा…

परफेक्ट है में,वैसे भी बच्चन जी ने भी तो कहा है भेद कराते मंदिर मस्जिद मेल कराती मधुशाला।
बहुत बढ़िया लिखा।