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हमारे बूढ़े बुजुर्ग कहा करते थे बड़ाई से डरना चाहिए और किसी के मुंह पर उसकी बड़ाई कदापि न करनी चाहिए, लेकिन आज सब कुछ उलट हो रहा है। बड़ी बड़ी सभाओँ में नेतागणों के अनुज उनके बड़प्पन के बोल गा रहे है, इसके लिए इलाहाबादियों के पास एक स्पेशल शब्द है। चेलागिरी करने वालों को हम इलाहाबादी तेलंग कहते हैं, उसके इस गुण को तेल्लई कहते हैं जिसका मतलब है तेल लगाना। तेल लगाने से तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति का प्रिय बनने की कोशिश में उसकी तारीफों के पुल बांधे जाएं और वो भी बिना सपोर्ट के (इससे ढहने में आसानी रहती है)।
पैदावार बढ़ रही हैः आज तेलंग लोगों की पूरी एक फौज खड़ी हो गई है। जिधर देखो तेलंग पैदा हो रहे हैं, एक लहलहाती फसल खड़ी है, पककर कटने को तैयार, गोदामों में नहीं यह सीधे दिमाग में घुसने को तैयार है। कोई फेसबुक पर तेल लगा रहा है, कोई ट्विटर पर, कोई फोनय पर ठोंके पड़ा है, सब तेल लगाने में तल्लीन हैं। हर कोई इस गुण को अपने में उत्पन्न करना चाहता है और इसकी पैदाइश के बाद इसकी संभाल ऐसे करने में लगा है जैसे नवजात शिशु की देखभाल की जाती है।
बंधुआ तेलंगः जब हम विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे तो वहां शोधार्थियों से बातों ही बातों में पचा चला कि ये लोग शोध कम करते हैं, तेल्लई ज्यादा करना पड़ता है और इनके गाइड प्रोफेसर्स ने इन्हे बंधुआ तेलंग बना रखा है। वे उनके घरों में सब्जी लातें हैं, बच्चों को ट्यूशन देते हैं, कुछ तो स्कूल भी छोड़ने जाते हैं। ऐसे ही ढेर सारे काम ये लोग अपने गाइड्स के घरों के किया करते थे। यह सब कुछ जानकर बड़ा अटपटा सा लगा। ऐसे बंधुआ तेलंग आपको हर जगह मिलेंगे, सरकारी दफ्तरों, निजी संस्थानों, हर जगह। सरजी की हां में हां मिलाना और सबके सामने सरजी के कारनामों की प्रस्तुति देना इनके कर्तव्य और विशेषाधिकार हैं।
तेंलग नहीं हिजड़े हैः दरअसल जो लोग अपनी इच्छा से तेल्लई का काम नहीं कर रहे, वे तेलंग कम हिजड़े ज्यादा है। इन्हें अपने ऊपर जरा भी विश्वास नहीं होता, अपने काम पर ये भरोसा नहीं करते, तो तेल्लई का माध्यम चुनते हैं कि किसी तरह लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए, और एक बार इस तरीके से मिला लक्ष्य इनके तेल्लई को जगा देता है और नशए की तरह लहूं में समा जाता है और ऐसे लोग इसी खुशफहमी में लीन रहते है कि तेल्लई ही हर मर्ज की दवा है, ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा होने के कारण आज बहुमत भी तेल्लई का ही है।
जय हो तेलंगों की।
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