शनिवार, 21 अगस्त 2010

जूते का भी सम्मान करो


15 अगस्त को एक बार फिर जूते की गूंज सुनाई दी। इस बार मारने वाला एक आम आदमी नहीं था, वो एक सरकारी नुमाइंदा था, लेकिन उसका निशाना एक राजनैतिक व्यक्तित्व पर था। उमर अब्दुल्ला पर जूता पड़ा तो नहीं, लेकिन राष्ट्रगान की सावधानी के बीच उन्हें इस बात का आभास हो गया था, कि जूते का राहु उनके सिर से होकर गुजर गया है, इसीलिए राज्य को संबोधित करते हुए जनता के दिल तक इसी जूते के सहारे पहुंचने की कोशिश की। बोले कि अगर हाथ में पत्थर के बजाय जूते ही आ जाएं, तो विरोध का यह तरीका ज्यादा अच्छा होगा। जूता फेंकने वाले उस हेड कांस्टेबल को उमर ने माफ भी कर दिया।
जार्ज डब्ल्यू बुश और मुंतजर अल जैदी से शुरू हुआः यह जूते सिर का खेल बीच में बड़ा लोकप्रिय हुआ। भारत में भी कई लोगों ने जूतमपैजार करने की कोशिश की और सोचा कि वे भी मुंतजर की तरह महान हो जाएंगे, अहा दुर्भाग्य ऐसा हो न सका। ये एक सिलसिला शुरू हुआ तो इस पर लेख भी लिखे गए और बड़ी मंत्रणाएं हुईं इस जूते पर। गोष्ठियां की गईं और धीरे धीरे जूता विरोध जताने का प्रतीक बनता जा रहा है। जैसे पहले किसी सभा या फैसले के विरोध में लोग काली पट्टी बांधकर जाते थे, अब ठीक उसी तरह जूता लेकर सामने आने लगे हैं। आगे चलकर हो सकता है ये जूता, झंडे की भी जगह हड़प ले, क्योंकि मुझे तो इसमें झंडे के भी गुण नजर आ रहे हैं। मसलनः उग्र विरोध के लिए काला जूता फेंको, शांत विरोध के लिए सफेद जूता फेंको और दिखाओ।
यह विरोधी जूता व्यापार के नए पट भी खोल सकता है। इस पर नए तरीके के रिसर्च हो सकते हैं- ज्यादा मारक क्षमता वाला जूता, हवा से हवा में वार करने वाला जूता, सीधे सिर पर वार करने वाला जूता, जमीन से खोपड़ी औरप हवा से खोपड़ी पर वार करने वाला जूता। मतलब कि इस जूते पर प्रक्षेपास्त्रों की तरह प्रयोग किए जा सकते हैं।
कल को हो सकता हैः जूते के निशान वाली एक बड़ी विरोधी पार्टी खड़ी हो जाए, जो एक सशक्त विपक्षी का किरदार निभाए। किसी भी विधेयक के विरोध मेः ले जूता, ले जूता, वोट नहीं जूतै जूता। और क्या पता भाई, जनता का दिल इस जूते वाली पार्टी पर आ जाए और धीरे धीरे कई देशों में ये जूते वाले लोग राज्य करने लगें, इसीलिए कहता हूं जूते का भी सम्मान करना सीखो।

1 टिप्पणी:

अजित त्रिपाठी ने कहा…

जूता जूता सब करैं पर जूता लेय न कोय।
जो जेतना जूता लै सके ऊ बलशाली होय, रे भइया ऊ बलशाली होय।।